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हाथ की लकीरें .....

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अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझ को                                                         क़तील शिफ़ाई (  इंसान अभी भी मजबूर है। ) अब जब कि चांद सूरज सब विज्ञान की परिधि में आ गए हैं। तो इस तरह की प्रश्न भी उचित हैं। मगर जितना हस्तरेखा का अनुभव मुझे हैं उस आधार पर में कह सकता हूँ कि आप रेखाओं की एक सीमा तक ही अवहेलना कर सकते हो। में यहां ज़ियाद उदाहरण नहीं दूंगा। अगर किसी की मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा आपस में मिल जाती है । तो यह असंतुलन की निशानी है। यह  दोनों हाथों  में हो तो व्यक्ति का दृष्टिकोण समाज और परिवेश से भिन्न होता है। ह्रदय और मस्तिष्क रेखा के मध्य अंतर अंतर होना चाहिए । नहीं तो व्यक्ति अंतर्मुखी होता है और समाज में सही तरह से समाहित नहीं होता। वैसे इस हाथ में बहुत कुछ है लेकिन उस पर चर्चा नहीं ये दिल्ली के मुख्यमंत्री इनके हाथ में मस्तिष्क और ह्रदय रेखा में पर्याप्त दूरी है। इनको समाज और लोगों का सब कुछ पता है। ये सब को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा कर सकता है, कारण इसकी ह्रदय रेखा इसको बिल्कुल भी भावुक नहीं बनाती। यह ह्रदय रेखा अ