हाथ की लकीरें .....
अपने हाथों की लकीरों में सजा ले मुझ को
मैं हूँ तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझ को
क़तील शिफ़ाई
( इंसान अभी भी मजबूर है।) अब जब कि चांद सूरज सब विज्ञान की परिधि में आ गए हैं। तो इस तरह की प्रश्न भी उचित हैं। मगर जितना हस्तरेखा का अनुभव मुझे हैं उस आधार पर में कह सकता हूँ कि आप रेखाओं की एक सीमा तक ही अवहेलना कर सकते हो।
में यहां ज़ियाद उदाहरण नहीं दूंगा।
- अगर किसी की मस्तिष्क रेखा और ह्रदय रेखा आपस में मिल जाती है । तो यह असंतुलन की निशानी है। यह दोनों हाथों में हो तो व्यक्ति का दृष्टिकोण समाज और परिवेश से भिन्न होता है।
- ह्रदय और मस्तिष्क रेखा के मध्य अंतर अंतर होना चाहिए । नहीं तो व्यक्ति अंतर्मुखी होता है और समाज में सही तरह से समाहित नहीं होता।
वैसे इस हाथ में बहुत कुछ है लेकिन उस पर चर्चा नहीं
ये दिल्ली के मुख्यमंत्री इनके हाथ में मस्तिष्क और ह्रदय रेखा में पर्याप्त दूरी है। इनको समाज और लोगों का सब कुछ पता है। ये सब को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा कर सकता है, कारण इसकी ह्रदय रेखा इसको बिल्कुल भी भावुक नहीं बनाती। यह ह्रदय रेखा अति महत्वाकांक्षी और स्वार्थ सिद्धि की निशानी है।
- ह्रदय रेखा हल्का वक्र का आकार लेते हुये भी तर्जनी के नीचे ब्रहस्पति पर्वत को छू रही है।
- हाथ में अधिक रेखायँ भी नहीं है इस कारण ये व्यक्ति कभी किसी बात की चिंता नहीं करता
- यहाँ भी वही ह्रदय रेखा है जो पूरी नहीं है। यह भी स्वार्थ सिद्ध की ओर ले जाती है।
- बाकी हाथ अच्छा है लेकिन इस हाथ में एक कमी है अपने निर्णय स्वयं न लेने की या ये कह सकते हैं कि अपनी अलग राह और पहचान बनाने की इच्छा नहीं है।
यह हाथ मुझे इंटरनेट पर मिला है। मुझे नहीं पता की यह हाथ स्वामी विवेकानंद है की नहीं लकिन यह जिस का भी हाथ है वो एक संतुष्ट इंसान है
ह्रदय रेखा तर्जनी और मध्यमा के मध्य मैं जा रही है ।एक रेखा ब्रहस्पति और एक शनि पर जा रही है। एक संतुलित और अति सन्तुष्ट होने की निशानी है। यही रेखा यहां त्याग और मोक्ष की इच्छा है।
सवेदनशील मस्तिष्क रेखा भावुक और संतुलन का अद्भुत समन्वय है। यहां निराशा नहीं है पर अनिश्चितता के प्रति चिंता है।
अगर आप थोड़ा और जानकारी चाहते हैं तो आपको इस लिंक ले मिल सकती है।
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